एक तरफ जहां ओमिक्रोन के बढ़ रहे मामले से देश में तीसरी लहर की आशंका दिख रही है वहीं दूसरी तरफ बड़े बड़े दिग्गज नेता शहर शहर रैलियाँ कर रहे है। कहीं पी.एम. मोदी की रैली तो कहीं सी.एम. योगी की विशल रैली कहीं अखिलेश यादव की विशाल संकल्प यात्रा हो रही है तो कहीं प्रियंका गांधी की प्रतिज्ञा रैली। दूसरी तरफ स्कूलों कालेजों और बड़े बड़े शैकक्षिक संस्थानों को खुलने से पहले ही बंद करवा दिया गया है। सवाल यहाँ ये है कि स्कूल कालेजों को बंद करवा कर, बिना मास्क और कोविड प्रोटोकॉल को तोड़कर क्या हम ओमीक्रॉन से लड़ सकते है...तो जवाब है नहीं। दूसरी लहर से पहले भी ऐसी यात्राए और जनसभाए हो रही थी। वो दृश्य आज भी हमे विचलित करते है जब अस्पतालों में लोग आक्सिजन गैस को लेकर परेशान थे और भयभीत भी। यूरोप के देशों में ओमीक्रॉन के लगातार बढ़ते मामले से यह खतरा दिन ब दिन बढ़ता जा रहा है।
WHO ने चेताया है की ओमीक्रॉन के मामलों में बढ़ोतरी हो सकती है और मौतों के आँकड़े भी फिर से बढ़ सकते है। ब्रिटेन में ओमीक्रॉन से पहली मौत के कारण रेड एलर्ट जारी कर दिया गया है, भारत में हालत ये है कि टेस्टिंग की रफ्तार भी धीमी हो गई है यहाँ तक कि कई राज्यों में टेस्टिंग के आँकड़े डैश्बोर्ड में अंकित भी नहीं किए जा रहे है क्योंकी यही आँकड़े जीनोम सीक्वन्सिंग में काम आते है जिससे हम यह पता कर सकते है की यह बीमारी कितनी खतरनाक और इसका नेचर क्या है।
ईधर नेताओं की धुआंधार रैलियाँ को देखकर इलाहाबाद हाई कोर्ट ने प्रधानमंत्री और चुनाव आयुक्त से विधानसभा चुनाव को टालने का अनुरोध किया था। हाईकोर्ट का नाराज होना जायज था क्योंकि इन जनसैलाबों में लोगों और नेताओं द्वारा कोविड प्रोटोकॉल का अनुपालन करते नहीं नजर आए।
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