चौथी दुनिया के भविष्य पर टिका है अब के मानव का भविष्य

इंसान चौथी औद्योगिक क्रांति के दरवाजे पर खड़ा है। इस दरवाजे के बाहर कदम रखते ही इंसान के जीवन जीने का तरीका बदल जाएगा। इस नयी दुनिया में जाने के लिए बहुत सी नयी-नयी तकनीकी और प्रोद्योगिकियों  को विकसित किया जा रहा है, ये आधुनिक औजार मानव के जटिल कार्यों को करने जैसे कि सीढ़ियाँ चढ़ना, कार चलाने जैसे कार्यों को करने में सक्षम होगा।

कुछ उदाहरणों से समझा जा सकता है की चौथी औद्योगिक क्रांति का सूत्रपात हो चुका है। लेकिन इसके पूरा होने से मानवीय श्रम और रोजगार पर खतरे के बादल मंडराते दिख रहे है। औद्योगिक नीतियों के शोधकर्ता ऑस्ट्रिया के एलेजांडरों लावोपा और मिशेल डेलेरा ने कहा कि चौथी औद्योगिक क्रांति एक तकनीकी छलांग से कहीं अधिक है। वो कहते है कि, पहली औद्योगिक क्रांति 18 वीं शताब्दी में भाप इंजन के अविष्कार से हुई थी, 19 वीं शताब्दी में दूसरी क्रांति व्यापक विद्युतीकरण से हुई और तीसरी औद्योगिक क्रांति 1960 से दशक में कम्प्यूटर तकनीकी क्षेत्र में प्रगति था। यहाँ हम ये देख और जान सकते है कि चौथी औद्योगिक क्रांति भी तकनीकी प्रगति का उत्पाद है। मशीनें, इंटरनेट और थिंग्स के माध्यम से एक दूसरे से बात करती है। ये प्रक्रियाँ एल्गोरिथ्म द्वारा तैयार किए गए सवालों का अनुकरण करती है और मनुष्य इंटरफेस के माध्यम से यांत्रिक प्रक्रिया के साथ लाइव बात चीत कर सकते है। इसी संदर्भ में मूर के नियम को याद करना उचित होगा वो कहते ही कि कम्प्यूटर चिप्स हर 18 महीने में क्षमता में दो गुना और कीमत में आधा हो जाता है। ठीक इसी तरह आज बिग डाटा रोबाटिक्स और कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई) के क्षेत्र में एक क्रांति की शुरुआत हो गई है। ये हमें सोचने में मजबूर करता है की हम चौथी औद्योगिक क्रांति की आखरी सीढ़ी पर तीसरी क्रांति की पूछ पकड़ कर, लेकिन बड़े पैमाने पर ये अधिक गति और क्षमता के साथ फैल भी रही है।

चौथी औद्योगिक क्रांति को छोटे रूप में समझना है तो कहा जा सकता है कि यह क्रांति उन्नत डिजिटल उत्पादों और प्रद्योगिकी विनिर्माणों की प्रक्रिया को बदल देगी और आने वाले भविष्य पर गहरा प्रभाव डालने की क्षमता भी रखेगी। ये क्रांति जैविक, भौतिक और डिजिटल सीमाओं को तोड़ देगी जो की इसकी खासियत है। चौथी औद्योगिक क्रांति का विश्लेषण कोई इतिहासकार या फिर कोई सामाजिक सिद्धांतकार नहीं कर रहा बल्कि इसे वर्ल्ड इकनॉमिक फोरम के कार्यकारी अध्यक्ष कालूस शाचवाब ने 2016 में अपनी लिखी पुस्तक “द फोर्थ इन्डस्ट्रीयल रेवलूशन” में किया था। शचवाब ने इस अवधारणा का परिचय करते हुवे लिखा कि “हम एक क्रांति की शुरुआत में है जो मूलतः हमारे जीने, कार्य और एक दूसरे से संबंध के तरीके को बदल रही है अपने पैमाने दायरे और जटिलताओं में जिसे मैं चौथी औद्योगिक क्रांति मानता हूँ, उसे मानव ने कभी अनुभव नहीं किया है। इस अवधारणा के बाद कई दिग्गज कंपनियों जैसे रिलायंस, बोस्टन कंसलटिंग ग्रुप, प्राइस वाटर हाउस कूपर्स ने प्रचारित किया है। भारत सहित दुनिया भर की सरकारों ने इसे अपने अनुशार अलग अलग नाम भी दिया है। भारत सरकार इसे उद्योग 4.0 कहकर बुलाती है। यहाँ तक कि इसे संयुक्त राष्ट्र ने भी अपने औद्योगिक विकास संगढ़न में शामिल किया। मॉर्गन के शोध पत्र के अनुसार, चौथी औद्योगिक क्रांति के बारे में 4 फरवरी 2022 को गूगल में तलाशने पर 127 मिलियन सर्च रिजल्ट सामने आए थे। ये दिखाता है कि पिछले कुछ वर्षों में इंटरनेट साहित्य में इस परिकल्पना का कितना विस्तार हुआ है। ये चाहे एक क्रांति के रूप में हो या न हो, उच्च तकनीकी का प्रभाव रहेगा और आने वाले समय में ये और भी बेहतर होती जाएंगी। समय के साथ साथ बदलते हुए यह और भी मजबूत होता जाएगा।

अब हम यह मान कर चल रहे है कि चौथी औद्योगिक क्रांति शुरू हो चुकी है। ऐसे में यह सवाल उठना जायज है कि सूचना प्रोद्योगिकी, कृत्रिम बुद्धिमत्ता और स्वचालित मशीनों और इसके साथ अन्य तकनीकों को अपनाने के परिणाम क्या होंगे? विभिन्न क्षेत्रों में काम कर रहे कामगरों को यह भय सता रहा है कि रोबोट आ रहे है और उनके काम अब ज्यादा दिन तक टिक नहीं सकेंगे। इस चिंता को अगर सही माने तो जिसकी पुष्टि अब तक किए गए कई सर्वे भी करते आ रहे है। ऐसे में अब वो दिन अब दूर नहीं जब बड़ी संख्या में कामगारों की बड़ी फौज अपने काम से वंचित हो जाएगी। कोविड-19 की वैश्विक महामारी ने 2020 की शुरुआत में अर्थव्यवस्था को एक के बाद एक ध्वस्थ करने का काम किया। पूरी दुनिया में 2021 के अंत तक बेरोजगार और अर्ध बेरोजगार लोगों की संख्या 2019 में 187 मिलियन से बढ़कर 221 मिलियन तक पहुँच गई थी। सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी के अनुसार दुनिया भर के बेरोजगार लोगों की कुल संख्या के लगभग एक चौथाई बेरोजगार भारत में रहते है। वर्तमान अनुमानों के अनुसार 2030 तक दुनिया में नौकरियों के नुकसान का प्रतिशत 15 से 60 के आसपास रहेगा। यह ऐसे मुकाम तक पहुचेगा जहाँ अधिकांश मानव कर्मचारी अपनी नौकरी खो देंगे। ऐसे में नयी नौकरियों को उपलब्ध करने की आवश्यकता होगी। मार्क जुकरबर्ग ने यह कल्पना की है कि सभी व्यक्तियों को सार्वभौमिक मूल आए डी जाएगी। लेकिन क्या यह पर्याप्त होगी? वैश्विक पूंजीवादी अर्थव्यवस्था हमेशा ही विकास पर चलती है और अगर कोई विकास को दूर कर देगा तो यह कैसे बची रहेगी।

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sharmadevesh

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