मानवीय मूल्यों को विकसित करने वाले मौलिक संवैधानिक कर्तव्य

कर्तव्य से तात्पर्य “चाहिए से” है शिशुओं मे शुरुवाती नैतिक मूल्यों को आज्ञा का पालन कराने के लिए परिवार इन मूल्यों को सीखाते है जैसे माता पिता की आज्ञा का पालन करना चाहिए, अपने से बड़ों का हमेशा आदर व सत्कार करना चाहिए इत्यादि।  इसी संदर्भ में संविधान निर्माताओं ने नागरिकों के लोकतान्त्रिक दायित्वों के अनुपालन करने के लिए इन मौलिक कर्तव्यों को उल्लेखित किया गया जैसे संविधान का पालन करे उसके आदर्शों, संस्था, राष्ट्रद्वज और राष्ट्रगान का पालन करे। भारत की प्रभुता, एकता, व अखंडता की रक्षा करे एवं उसे अक्षुण रखे।

इतिहास                                                  

मौलिक कर्तव्य संविधान का अभिन्न अंग है। इसे संविधान में जोड़ने का विचार संघ सोवियत समाजवादी गणराज्य (वर्तमान में रूस) से लिया गया। संविधान के निर्माण के 26 वर्षों के बाद स्वर्ण सिंह समिति की सिफारिश पर 42वे संविधान संशोधन(1976) भाग-5 में जोड़ा गया था। जिसके बाद 2002 में भारतीय संविधान संशोधन 86 के अंतर्गत एक अतिरिक्त मौलिक कर्तव्य को जोड़ा गया। जिसके फलस्वरूप वर्तमान समय में मौलिक कर्तव्यों की संख्या 11 हो चुकी है। यह न्यायलय द्वारा परिवर्तनीय नहीं है, लेकिन नागरिकों को इसका पालन करना आवश्यक होता है। यह एक लंबा और विस्तृत अनुछेद है ये मानव के सामाजिक जिम्मेदारी जैसे ईमानदारी, सेवा भाव, शांति, प्रेम अहिंसा को सींचने मे अहम भूमिका निभाते है।

 

कुछ आलोचकों द्वारा मूल्य कर्तव्यों की आलोचना की जाती है, लेकिन इससे मूल्य कर्तव्य का महत्व कम नहीं हो जाता। ये मात्र आपेक्षाएं नहीं है इनके विशेष महत्व भी है जैसे नागरिक जब मौलिक अधिकार का उपयोग करते है तब ये कर्तव्य नागरिकों के सचेतक के रूप में काम करते है। कर्तव्य राष्ट्र विरोधी और सामाजिक विरोधी गतिविधियों जैसे राष्ट्रध्वज को जलाने, सार्वजनिक संपत्ति को नष्ट करने, वर्ग पर आधारित सभी भेदभाव वाली अवधारणा आदि के विरुद्ध सतर्क करता है। मूल्य कर्तव्य नागरिकों में अनुशासन की सीख एवं प्रतिबद्धता के स्त्रोत के रूप में कार्य करता है, ये नागरिकों में इस सोच को पैदा करते है कि नागरिक केवल मूकदर्शक नहीं है बल्कि राष्ट्रीय लक्ष्य स्वीकारोक्ति में सक्रिय भागीदार भी है।

हमें मौलिक कर्तव्य का पालन क्यूँ करना चाहिए ?

भारतीय नागरिकों को अपने मौलिक कर्तव्यों का पालन क्यों करना चाहिए ?

इन कर्तव्यों को इस तरह समझ जाना चाहिए कि यदि राज्य या देश अपने नागरिकों को कुछ अधिकार और स्वतंत्रता प्रदान करने के लिए पूरी तरह से जिम्मेदार है, तो यह लोगों की जिम्मेदारी भी है की वे राज्य या देश के प्रति कुछ जिम्मेदारियों का पालन करे। यदि हम अपने कार्यों और कर्तव्यों को नहीं जानेंगे और उनका पालन नहीं करेंगे तो फिर हमे अधिकार भी नहीं मांगना चाहिए मतलब जितने अधिकार महत्वपूर्ण है उतने ही कर्तव्य भी। ये कर्तव्य न केवल नैतिक मूल्यों की शिक्षा देते है बल्कि भिन्न परिस्तिथियों में देशभक्ति और सामाजिक मूल्यों के बारे में जानने में भी मदद करते है। ये मूल्य लोगों के सोच और विचारों में बदलाव कर एक बेहतर समाज की स्थापना करते है। इन कर्तव्यों से कोई कानूनी समस्या नहीं होती है ये नागरिकों की जिम्मेदारी होती है ताकि देश में निरक्षरता को कम किया जा सके, प्रकृति को संरक्षित किया जा सके ताकि भविष्य में एक अच्छे पर्यावरण की और आने वाली पीढ़ी को पृथ्वी के संसधानों का लाभ उठाने की गारंटी दी जा सके। यह नागरिकों को सरकार के खिलाफ आक्रामक कार्य नहीं करने की प्रेरणा भी देता है ताकि एक राजनीतिक लोकतंत्र की और आदर्श समाज की स्थापना किया जा सके।     

                    

                 सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे संतु निरामया ।

                 सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चित् दुःखभाग् भवेत् ।।  

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sharmadevesh

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