स्वच्छता में सुधार के लिए व्यवहार पारिवर्तन संचार की भूमिका

स्वच्छता हमारे जीवन में बुनियादी आवश्यकता की तरह है जैसे हमें रोटी कपड़ा और मकान की जरूरत है वैसे ही स्वच्छता भी इन्ही बुनियादी आवश्यकता के रूप में होनी चाहिए। स्वच्छता हमारी प्रथम प्राथमिकता होनी चाहिए। हमे स्वच्छता और सफाई की अहमियत का पता होना चाहिए हमे अपने देश समाज और लोगों से गंदगी को हटाना चाहिए तभी हम एक अच्छे और बेहतर स्वास्थ्य की भी परिकल्पना कर सकेंगे, तभी हम सतत विकास की अवधारणा वाले सभी 16 लक्ष्यों के प्रति भी आगे बढ़ सकेंगे।

भारत विश्व का एकमात्र ऐसा देश जिसने सार्वभौमिक स्वच्छता मिशन को अकेले छेड़ रखा है अपने राष्ट्रीय महान व्यक्तियों महात्मा गांधी, रविन्द्र नाथ टैगोर, जवाहर लाल नेहरू आदि व्यक्तियों से प्रेरित हो कर उनके इच्छा और सपने को साकार करने के प्रति आगे बढ़ रहा है।

राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के 71वीं जन्मतिथि पूरा होने पर पूरा देश साफ सुधरा समाज और देश के निर्माण के लक्ष्य के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि अर्पित कर रहा है। जब बात आती है स्वच्छता और व्यवहार पारिवर्तन की तो गांधी जी के जीवन का उदाहरण सबसे पहले याद आता है। क्योंकि गांधी जी का पूरा जीवन साफ सफाई को प्रेरित करने पर ही रहा है। गांधी जी का मानना था की एक राष्ट्र के तौर पर खड़े होने के लिए हमें राजनीतिक आजादी नहीं बल्कि गंदगी और बीमारियों से आजादी चाहिए होगी। इसी सोच के साथ उन्होंने स्वच्छ भारत का सपना देखा। देश के आजादी के इतने साल बाद भी हम उनके सपनों को पूरा करने में नाकाम रहे। 2014 में जब एनडीए की सरकार बनी तो प्रधानमंत्री के तौर पर नहीं बल्कि प्रधानसेवक के तौर पर माननीय नरेन्द्र मोदी ने देश के एक ऐसे नए भारत का संकल्प लिया जिसमे पूरे देश के विकास के साथ साथ स्वच्छता के विकास को अग्रसर किया और सफल भी हुए।

लेख का सारांश स्वच्छता व्यवहार में परिवर्तन को  हम गांधी जी के निम्न उदाहरणों से समझ सकते है। जैसे "मैं किसी को गंदे पैरों के साथ अपने मन से गुजरने नही दूंगा" ये महात्मा गांधी का वो विचार है जिससे हमें ये पता चलता है की स्वच्छता का उनके जीवन में कितना महत्व है। महात्मा गांधी ने स्वच्छ स्वास्थ्य और खुशहाल भारत का सपना देखा था। हमे भी उनकी तरह स्वच्छता को अपने जीवन का चरित्र मान कर आगे बढ़ना चाहिए।    

गांधी जी के स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान उनके द्वारा कहे एक कहावत “स्वच्छ मन स्वच्छ तन” में एक गहरा दार्शनिक संदेश छुपा है जो हमे आज भी स्वच्छता के प्रति प्रेरित करता है। शायद गांधी जी स्वच्छता की कमी को हिंसक रूप मानते थे तभी उन्हें गंदगी में छुपा हिंसा का रूप दिखता था। गांधी जी का पूरा जीवन सत्य और अहिंसा के रूप में एक शोध यात्रा रही। सत्य और अहिंसा के शोध के रूप में शोधक अपने आत्मा का चिंतन करता है ताकि उसके जीवन, विचार और कर्तव्य में कभी द्वैध उत्पन्न न हो, अगर द्वैद्ध खड़ा होगा तो अंतः शुद्धि नही होगी। इसलिए हमे स्वच्छता के संदर्भ में अपने आत्म शुद्धि के अनुरूप आचरण करना होगा। आत्मा  शुद्धि होगी तभी जीवन, विचार और कर्तव्य भी शुद्ध होंगे। जिसके फलस्वरूप स्वच्छता भी हमारे जीवन चरित्र का हिस्सा होगी।

अपने चंपारण के दौरे पर उन्होंने कहा की था कि "जब तक हम अपने गांवों और शहरों की स्तिथियों को नही बदलते, अपने आप को बुरी आदतों से नही बदलते, बेहतर शौचालय नहीं बनाते तब तक स्वराज का हमारे लिए कोई महत्व नहीं है। गांधी जी केवल स्वच्छता का संदेश नही देते थे बल्कि उसे खुद भी पालन करते थे वो कहते थे कि इसे आचरण के रूप में अपने आदत में उतारे वो जब संदेश देते थे तो अपना खुद का उदाहरण भी देते थे। वो खुद झाड़ू उठाकर साफ करते थे।

स्वच्छता के मामले में देश की छवि को एक सकारात्मक व्यवहार परिवर्तन में संचार का रूप देने के लिए 2014 में एक जन आंदोलन शुरू किया गया। स्वच्छ भारत मिशन, एक कदम स्वच्छता की ओर। इस मिशन को पूरा करने के लिए देश के प्रधानमंत्री ने इस अभियान से जुड़ने की अपील की। राष्ट्रपिता से प्रेरित हो कर उन्होंने शहरी स्वच्छता अभियान के साथ ग्रामीण स्वच्छता अभियान को भी आगे किया इस मिशन को पूरा करने के लिए गांव, शहर, कस्बे, जिलों में प्रतिस्पर्धा का माहौल बनाया गया। उन्होंने स्वच्छता को स्वच्छ अर्थव्यवस्था से जोड़ एक राष्ट्रीय चेतना का आह्वान किया, उन्होंने कहा की अगर हम अपने गांवों शहरों कस्बों को स्वच्छ रखेंगे गंदगी आने नही देंगे, तो हमारा स्वास्थ्य अच्छा होगा, स्वास्थ्य अच्छा होगा तो लोगों को बार बार अस्तपतालों के चक्कर नही लगाने पड़ेगे। अस्पतालों में जाने के बजाय लोग अपने काम पर ध्यान अधिक देंगे, सोचिए अगर देश में सब स्वास्थ्य हो जाए और अपना काम करे तो देश की जीडीपी 5 ट्रिलियन के लक्ष्यों को पार कर जाएगी। इस मिशन के माध्यम से शौचालय के बनाने से महिलाओं के सशक्तिकरण के बारे में सोचा और साल दर साल स्वच्छता और स्वास्थ्य के बजट में वृद्धि की।

गांधी जी का दार्शन कर्म प्रधान पर आधारित था। मतलब हम केवल किताबों से ही नहीं बल्कि जीवन और उसके दायित्यों से भी सीखते है। इसलिए स्कूलों में छात्र और शिक्षक सहित इन दायित्वों को करने के लिए प्रेरित किया जाता है। स्वच्छता से जुड़े मुद्दे आज भी हमारे लोग और समाजों में प्रासंगिक है। इसी प्रासंगिकता को आगे बढ़ाने के लिए गांधी जी और उनके विचार एक समस्त संख्या बल के व्यवहार परिवर्तन को प्रेरणा देते है।  

             

             लोग अज्ञानता और लापरवाही की वजह से गंदगी में रहते है।    - महात्मा गांधी  

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