बजट दूरगामी नहीं बहुआयामी होना चाहिए   

कोविड-19 द्वारा उत्पन्न वैश्विक स्वास्थ्य संकट ने एक विशाल मानवीय मृत्यू दर के अलावा विश्व अर्थव्यवस्था  को पिछले सदी से भी अधिक बार आघात पहुचाया है। महामारी और सम्बद्ध लॉकडाउन उपायों ने वैश्विक अर्थव्यवस्था के एक बड़े हिस्से को बंद कर दिया था जिससे पिछले साल मंदी आई थी विश्व बैंक के अनुसार विश्व अर्थव्ययवस्था 2021 में 5.5 प्रतिशत और आईएमएफ़ के अनुसार 5.9 प्रतिशत की गिरावट रही थी। दुनिया के सामने खड़ा संकट कई मायनों में अनूठा है।

इस महामारी ने अफरातफरी और कई तरह की असुविधाओं को जन्म दिया इसका प्रभाव जो लॉकडाउन के वजह से भी हुआ। उसका सीधा असर मैक्रो ईकानमी जैसे जीडीपी, स्टॉक मार्केट उद्योग आदि पर भी रहा है।  जिसके परिणाम बताते है ही की महामारी का परिणाम किस तरह रहा है कोविड-19 ने लोगों के आए को कम कर दिया सामाजिक तानेबाने को पूरी तरह से तोड़ दिया। जिसका परिणाम haves and the have- not के बीच बढ़ती  असमानता है have उन्हे कहते है जिनके पास आजीविका के लिए पर्याप्त साधन है have-not  उन्हे कहते है जो गरीब है जिनके पास आजीविका के पर्याप्त साधन नहीं है। कोविड-19 काफी तेजी से फैला और इसके परिणाम उपर्युक्त संदर्भों से जान सकते है। हम ऐसा मान सकते है की भारत ने काफी अच्छा किया लेकिन बहुआयामी रास्तों पर हम औरों से पीछे रह गए या फिर असफल हो गए। इन्ही परिप्रेक्षय की बात करे तो उनके कुछ फायदे और नुकसान भी रहे।

सरकार का रेविन्यू पिछले साल से ही कम रहा था। सरकार ने उम्मीद की थी की 2020-2021 में उनका कर संग्रह 16 लाख करोड़ हो जाएगा लेकिन ऐसा हो नहीं सका केवल 7 लाख करोड़ संग्रहीत हो सके जिसके पीछे का कारण कोविड को बताया जाता है जो सच भी है। सरकार ने अपने पिछले बजट में कुल 30 लाख करोड़ के खर्च का प्लान बनाया था जिसे खर्च करने में कोई कमी भी नहीं की। सरकार ने समय को ध्यान में रखते हुए   वित्तीय घाटे की चिंता नहीं की। नया बजट आने वाला है सरकार को किन किन क्षेत्रों में अधिक ध्यान देने की जरूरत है उसे हम ऐसे समझ सकते है।

सरकार अपना राजस्व तीन तरह से खर्च करती है एक निवेश के लिए जिसका उपयोग रोड, हाइवे बनाने के लिए दूसरा जनता को मुफ़्त वितरण के लिए जैसे मुफ़्त राशन, शिक्षा और नकदी तीसरा सरकारी खपत के लिए जिससे सरकारी अधिकारी एसयूवी खरीद सके। सरकार को अपने हितों की अनदेखी करते हुए तमाम मुफ़्त वादों और सरकारी खपत को कम करना होगा ताकि अर्थव्ययवस्था पटरी पर वापस आ सके। मुफ़्त राशन देने के बजाए सरकार को नकदी को प्राथमिकता देना चाहिए ताकि मांग को बढ़ाया जा सके। सरकारी खपत में अधिकारियों के वेतन को कम किया जाना चाहिए और सार्वजनिक निवेश पर अधिक ध्यान देना चाहिए जैसे मानिए सरकार मुफ़्त राशन और मुफ़्त टीवी फ्रिज देती है तो उसका उपयोग केवल उपभोग के लाभ के लिए होगा। सरकार नकदी और निवेश में अधिक खर्च करेगी तो, हाइवे और रोड बनेंगे तो मांग और रोजगार में बढ़ोतरी होगी। ये उपाय दीर्घ अवधि के लिए है इससे तुरंत लाभ नहीं मिलेगा इसमे समय लगेगा। हमे लोगों को तुरंत लाभ देना होगा।

कोरोना महामरी ने तो बता दिया की हमारे देश की लोक स्वास्थ्य अवसंरचना कितनी खराब है। केन्द्रीय सरकार की स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय का बजट पिछले साल के बजट से अधिक होना चाहिए। अभी 70,000 करोड़ के आस पास है जो हमारे कुल खर्च का मात्र 2 प्रतिशत है। इसे कम से कम 1 लाख करोड़ का होना चाहिए।

क्रूड की कीमतें 2022 में 14 प्रतिशत बढ़कर 88.17 डॉलर प्रति बैरल हो गई। पिछले सात सालों में यह सबसे ज्यादा है अगर ऐसे ही क्रूड की कीमतों में बढ़ोतरी होती रही तो पाँच राज्यों के चुनाव खत्म होने के बाद एकसाथ कीमतें बढ़ सकती है। इसका सीधा असर महंगाई पर देखने को मिल सकता है। ऐसे में यह देखना होगा की वित्त मंत्री जनता को पेट्रोल डीजल के नए दौर में डालती है या फिर उन्हे राहत देने के लिए पेट्रोल-डीजल पर उत्पाद शुल्क को कम करेंगे। केंद्र सरकार के पास एक रास्ता यह है वह राज्यों से पेट्रो उत्पादों को जीएसटी के दायरे में लाने के लिए नए सिरे से बात करे और उन्हे तैयार करे।

अमेरिका और दूसरे अर्थव्ययवस्था में महंगाई के दौर के लौटने का दौर फिर से चालू हो सकता है इसका प्रभाव भारत में शेयर बाजारो के लगातार गिरावट का होना दिख रहा है। अमेरिका के फेड्रल बैंक की तरफ से ब्याज दरों को बढ़ाने का ऐलान होने वाला है। इसका असर भारत में भी देखने को मिल सकता है अमेरिका के आकर्षण से भारत के विदेशी निवेशक यह से पैसा निकाल कर अमेरिका की तरफ रुख कर सकता है ऐसे में आने वाले बजट 2022-2023 में देखना यह होगा की वित्त मंत्री निवेशकों को पैसा निकालने से रोकने के लिए क्या-क्या उपाय करती है।   

चीन की आक्रामकता को देश पिछले साल ही देखता आ रहा है आगे हम अगर कमजोर हुए तो हम युद्ध को आमंत्रित कर देंगे ऐसी परिस्तिथियों में हमे खुद को तैयार और मजबूत रखना होगा इसके लिए हमे अपने रक्षा उपकरणों में भी खर्च करना पड़ेगा। सरकार को इस क्षेत्र में भी ध्यान देना चाहिए वर्तमान में रक्षा खर्च जीडीपी का मात्र 1.6 प्रतिशत है जिसे बढ़ाकर 3 प्रतिशत तक लाना चाहिए।

विश्व विकास दर के अनुमान के अनुसार भारत 2030 तक 5 ट्रिलियन अर्थव्ययवस्था बनने की उम्मीद लगाई जा रही है। इन लक्ष्यों को पूरा करने के लिए सरकार को मूलभूत मुद्दों पर भी विचार विमर्स करना चाहिए।  देश अभी K शेप रिकवरी के पायदान पर है सरकार को वित्तीय घाटे और अंतर्राष्ट्रीय मानकों पर ध्यान न देते हुए एक अच्छे बजट को पेश करने की ओर ध्यान देना चाहिए।   

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